लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-5)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
राज एकदम से उछला और बोला ,"अंकल वो देखो कल वाली लड़की।वो देखो उस किले के खंडहर की चट्टान के पीछे खड़ी है।"
भूषण प्रसाद ने उधर देखा जिधर राज दिखा रहा था ।उधर देखकर बोले,"कौन सी लड़की , कहां है वो ? मुझे तो नहीं दिखाई दे रही।"
"अरे ….. अंकल अभी तो यहीं खड़ी थी जब हम गुफा से बाहर निकलें थे वो वहीं खड़ी थी।एक बात और है अंकल वो कोई रहस्यमय लड़की नहीं है वो तो घर से भागी हुई हैं ।आज ही मैंने उसकी तस्वीर अखबार में देखी थी ।" राज ने अपनी नजरों से उधर देखकर कुछ सोचते हुए कहा।
भूषण प्रसाद उसकी कमर थपथपाते हुए बोले,"कोई बात नहीं बेटा अगर वहां पर होगी तो मिल ही जाएगी ।मुझे लगता है तुम्हारी कल की थकान मिटती नहीं है।"
यह कहकर भूषण प्रसाद मुस्कुरा उठे।
गाड़ी खंडहरों की ओर भागी जा रही थी ।तभी राज को वहीं लड़की किले के मुख्य दरवाजे से बाहर जाती दिखाई दी ।वह देखकर भी चुप लगा गया कि कहीं अंकल उसे पागल ना समझ बैठे कि उसे ही वो लड़की दिखाई दे रही है अंकल को नहीं ।
गाड़ी को भूषण प्रसाद ने खंडहर के साथ ही लगा दिया था ।अंदर काम चल रहा था ।हर तरफ से छैनी हथौड़े की आवाज आ रही थी। भूषण प्रसाद ने अपने जूनियर से तहखाने की चाबी ली और राज को लेकर तहखाने की सीढ़ियां उतरने लगे। वैसे वो जमीन में दबा होने के कारण तहखाना लग रहा था ।वैसे वो महल का एक कक्ष ही था।राज भूषण प्रसाद के पीछे पीछे सीढ़ियां उतर रहा था।नीचे उतर कर वो एक बड़े से हाल नुमाकमरे में आ गये।कमरा वास्तव में बहुत सुसज्जित था । चारों ओर मूर्तियां ही मूर्तियां रखी थी ।छैनी हथौड़े तो ऐसे रखें थे जैसे कोई अभी अभी इन मूर्तियों को गढ़ कर बाहर निकला हो।राज देख रहा था भूषण अंकल की बात बिल्कुल सत्य थी उन सब मूर्तियों में एक ही चेहरा झलक रहा था ऐसे लग रहा था जैसे कलाकार को सिर्फ एक ही चेहरा तराशना आता है।
भूषण प्रसाद राज को लेकर उस कक्ष में गये जहां वो आदमकद तस्वीर लगी थी दीवार पर ।भूषण प्रसाद ने उसे कर्मचारियों से कहकर साफ करवा दिया था ।उस कक्ष में पहुंच कर भूषण प्रसाद बोले,
"देखो , ये रही वो तस्वीर एक बार तो मैं भी चौंक गया था कि तुम …और इस तस्वीर में कैसे।पर जब मैंने गौर से देखा तो पाया कि ये तुम नहीं हो तुम्हारी शक्ल का कोई और व्यक्ति हैं क्योंकि उसने कपड़े बड़े ही पुराने जमाने के पहन रखे थे।"
राज जब तस्वीर के नजदीक गया तो अब बुरी तरह चौंकने की बारी राज की थी ,"अरेरेरे….अंकल ये तो….ये तो वही लड़की है जो मुझे कल रास्ते में मिली थी और जिसे अभी मैंने यहां महल के खंडहर की चट्टान पर देखा था और …..और इसने कपड़े भी वैसे ही पहन रखे हैं जैसे कल पहन रखें थे ।ऐसे कपड़े जो पुराने जमाने मे नर्तकियां पहनती थी।"
कुछ सोचते हुए राज फिर से बोला,"अंकल एक बात और बताऊं अगर आप मेरा मज़ाक ना बनाओं तो?
"हां .. हां बिना हिचकिचाए बताओ।अब तो मुझे ये मामला कुछ रहस्यमय सा लगा रहा है।"भूषण प्रसाद ने उत्सुकतावश कहा।
"अंकल कल रात मैं सो रहा था जब आप से स्टडी रूम में बात करके मैं कमरे में आकर दूध पीकर लेट गया ।करीब दो ढाई बजे के आसपास मुझे ऐसे लगा जैसे यही लड़की मेरे पलंग के पास खड़ी है और मुझे एकटक निहार रही है वह होंठों ही होंठों में बुदबुदा रही थी जब मैंने गौर करके उसकी बात सुनी तो वो पता है क्या कह रही थी ?"
"क्या?" भूषण प्रसाद ने उसकी ओर देखा।
"अंकल वो कह रही थी ,"देव तुम आ गये …. मुझे पता था तुम ज़रूर आओगे।"
राज ने कल रात वाली सारी बात बता दी।
अंकल भूषण प्रसाद सोच में पड़ गये कि आखिर ये क्या माजरा है ।राज की तस्वीर इस तहखाने में।राज को यही तस्वीर वाली लड़की बार बार दिखाई देती है। जरूर कोई राज है इसमें। दोनों तहखाने के उस कमरें से बाहर निकलते हैं तो अचानक से अंधेरा होने के कारण राज का पैर किसी चीज से टकरा जाता है ।उसके पैर के अंगूठे से खून रिसने लगता है मोबाइल की रौशनी जब नीचे की ओर की जाती है तो दोनों का कलेजा मुंह को आ जाता है ।एक दबी घुटी सी चीख दोनों के मुंह से निकली ,*अंकल …..ये देखो नरकंकाल।*
भूषण प्रसाद तुरंत उस ओर लपके और देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि एक नरकंकाल और एक मादा कंकाल ज़मीन पर एक दूसरे का हाथ थामे पड़े है । दोनों के शरीर में एक एक खंजर नेस्तनाबूद है।भूषण प्रसाद जी भी अपने मोबाइल की लाइट जला लेते हैं और देखते हैं कि वो मादा कंकाल के हाथों में जो कंगन है वो कंगन उन्होंने कही देखें है ।ये याद करने की कोशिश करते हुए जैसे ही वो कुछ सोचकर पलटकर तस्वीर में देखते हैं तो उनके होश फाख्ता हो जाते हैं क्योंकि वही कंगन उस नर्तकी के हाथों में भी थे।वे जोर से चिल्लाते हैं ," राज वहां से उठकर इधर आओ ये कंकाल मुझे लगता है उस नर्तकी के और उसके प्रेमी के है ।ये देखो कंकाल के हाथों में जो कंगन है वहीं कंगन इस तस्वीर में भी है और जिस एंगल में इनके कंकाल पड़े हैं ऐसा लगता है ये प्रेमी जोड़ा कहीं चोरी छिपे एक दूसरे से मिलने आया होगा और पीछे से इन दोनों पर वार किया गया है।"
राज भी ये देखकर हैरान रह गया कि वहीं कंगन उस लड़की ने पहन रखे थे जो कंकाल के हाथों में थे राज को कुछ तो ये सोचकर और कुछ नीचे तहखाने में आक्सीजन कम होने की वजह से बेहोशी सी छाने लगी तो राज बोला,"अंकल ऊपर चलते हैं । मुझे यहां कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा।"
भूषण प्रसाद ये देख रहे थे कि जब से राज ने वो कंकाल देखें थे उसके चेहरे के हाव भाव ही बदल गये थे ।जो राज हंसता खिलखिलाता हुआ तहखाने में आया था वह जब बाहर निकल रहा था तो बड़ा ही धीर गंभीर हो गया था। भूषण प्रसाद ने तहखाने के दरवाज़े को ताला लगाया और चाबी अपने जूनियर को दे दी ।वे दोनों गाड़ी में बैठे तो राज ने कहीं चलने को कहा तो भूषण प्रसाद जी की गाड़ी उधर की ओर चल दी।
कहानी अभी जारी है…….
Abhilasha Deshpande
13-Aug-2023 10:17 PM
Nice poem
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Monika garg
14-Aug-2023 12:35 PM
कविता तो नहीं है
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KALPANA SINHA
12-Aug-2023 07:13 AM
Nice
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अदिति झा
17-Jul-2023 03:59 PM
Nice 👍🏼
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